पृथ्वी के प्रमुख स्थलरुप:
पृथ्वी की सतह सभी जगह एक सामान नहीं है, स्थलमंडल के कुछ भाग ऊँचे-नीचे तथा कुछ समतल है|
ये स्थलरूप दो प्रक्रियाओं के परिणामस्वरुप बनते हैं:
प्रथम या आतंरिक प्रक्रिया के कारण पृथ्वी की सतह कहीं उपर उठ जाती है तो कहीं नीचे धंस जाती है|
दूसरी या बाहय प्रक्रिया स्थल के लगातार बनने एवं टूटने की प्रक्रिया है|
पृथ्वी की सतह के टूटकर घिस जाने को अपरदन कहतें हैं, अपरदन की क्रिया द्वारा सतह नीची हो जाती है तथा निक्षेपण की क्रिया द्वारा इसका पुनः निर्माण होता है| ये दो प्रक्रियायें बहते हुए जल, वायु तथा बर्फ द्वारा होती है|
विभिन्न स्थलरूपों को उनकी ऊँचाई एवं ढाल के आधार पर पर्वतों, पत्थरों एवं मैदानों में वर्गीकृत कर सकते हैं|
पर्वत:
पर्वत पृथ्वी की सतह की प्राकृतिक ऊँचाई है, पर्वत का शिखर छोटा तथा आधार चौड़ा होता है| यह आस पास के क्षेत्र से बहुत ऊँचा होता है| ऊँचाई पर जाने पर जलवायु ठंडी होती जाती है| कुछ पर्वतों पर हमेशा जमी रहने वाली बर्फ की नदियाँ होती हैं, इन्हें हिमानी कहते हैं| कठोर जलवायु होने के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में बहुत कम लोग निवास करते हैं| यहाँ का धरातल कड़ी ढाल वाला होता है, कृषि योग्य भूमि बहुत कम होती है|
पर्वत एक रेखाक्रम में व्यवस्थित हो सकते हैं, जिन्हें श्रृंखला कहते हैं|
पर्वत तीन प्रकार के होते हैं: वलित पर्वत, भ्रन्शोत्थ पर्वत तथा ज्वालामुखी पर्वत|
हिमालय तथा आल्प्स वलित पर्वत हैं| जिनकी सतह उबड़-खाबड़ तथा शिखर शंक्वाकार है| भारत कि अरावली पर्वत श्रृंखला सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है, जो अपरदन के कारण घिस गयी है| उत्तरी अमेरिका के अल्पेशियन तथा रूस के यूराल पर्वत भी बहुत पुराने वलित पर्वत हैं|
जब स्थल का बहुत बड़ा भाग टूट जाता है, तथा उर्ध्वाधर रूप से विस्थापित हो जाता है, तब भ्रंशोत्थ पर्वतों के निर्माण होता है| उपर उठे हुए खंड को उत्खंड(हार्स्ट) तथा नीचे धंसे हुए खंड को द्रोणिका भ्रंश(ग्राबेन) कहते हैं| यूरोप कि राइन घाटी तथा वासजेस पर्वत इस तरह के पर्वत तंत्र के उदाहरण हैं|
ज्वालामुखी पर्वत ज्वालामुखी क्रियाओं से बनते हैंऑ अफ्रीका का माउंट किलिमंजारो तथा जापान का फ्युजिआमा इस तरह के पर्वतों के उदहारण हैं|
प्रशांत महासागर में स्थित मौनाकी पर्वत (हवाई द्वीप) सागर की सतह के नीचे स्थित है, इसकी ऊँचाई 10,205 मी है|
पठार:
पठार आस-पास के क्षेत्रों से अधिक उठा हुआ होता है तथा इसका उपरी हिस्सा सपाट होता है| पठारों की ऊँचाई कुछ सौ मीटर से हजार मीटर तक हो सकती है| भारत में दक्कन पठार पुराने पठारों में से एक हैं| तिब्बत का पठार विश्व का सबसे ऊँचा पठार है, जिसकी माध्य ऊँचाई 4000 मी से 6000 मी तक है|
मैदान:
मैदान समतल भूमि के बहुत बड़े भाग होते हैं| ये सामान्यतः माध्य समुद्र तल से 200 मी से अधिक ऊँचे नहीं होते हैं| कुछ मैदान समतल तथा कुछ उर्मिल तथा तरंगित हो सकते हैं| अधिकांश मैदान नदियों तथा उनकी सहायक नदियों से बने हैं| नदियाँ पर्वतों के ढाल पर नीचे की ओर बहती हैं तथा उन्हें अपरदित कर देती हैं, अपरदित पदार्थों(पत्थर, बालू, सिल्ट) को वे अपने साथ आगे ले जाकर घाटियों में निक्षेपित कर देती हैं| मैदान बहुत अधिक उपजाऊ होते हैं, और यहाँ परिवहन के साधनों का निर्माण करना आसान होता है, इसलिए मैदान विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाले स्थान होते हैं| नदियों द्वारा बनाये गए कुछ बड़े मैदान भारत में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र द्वारा बनाये गए मैदान तथा चीन के यांग्त्से नदी के मैदान हैं|
पर्वतों, पठारों तथा मैदानों से लाभ:
पर्वत जल के संग्रहागार होते हैं| अधिकांश नदियों के श्रोत पर्वतों में स्थित हिमानियाँ होती हैं| नदी घाटियाँ तथा वेदिकायें कृषि के लिए उपयुक्त होती हैं| पर्वतों के जल का उपयोग सिंचाई तथा पनबिजली के उत्पादन में भी किया जाता है| पर्वतों में अलग-अलग प्रकार के वनस्पतियाँ तथा जीव-जंतु पाए जाते हैं| वनों से हमें ईंधन, चारा, आश्रय तथा दुसरे उत्पाद जैसे गोंद, रेजिन इत्यादि प्राप्त होते हैं|
पठारों में खनिजों की प्रचुरता होती है, अफ्रीका का पठार सोना एवं हीरों के खनन के लिए प्रसिद्ध है| भारत में छोटा नागपुर के पठार में लोहा, कोयला तथा मैंगनीज के बहुत बड़े भंडार पाए जाते हैं| पठारी क्षेत्रों में बहुत से जलप्रप्रात होते हैं| भारत में छोटा नागपुर पठार पर स्थित स्वर्णरेखा नदी पर हुन्डरु जलप्रपात, कर्नाटक में जोग जलप्रपात आदि| लावा पठार में काली मिटटी की प्रचुरता होती है जो कृषि के लिए बहुत उपयुक्त है|
मैदान बहुत उपजाऊ होते हैं तथा यहाँ परिवहन के साधनों का निर्माण करना आसान है| भारत में गंगा का मैदान देश में सबसे अधिक जनसँख्या वाला क्षेत्र है|
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