लोग जो इस उपमहाद्वीप में 20 लाख
वर्ष पूर्व रहते थे, उन्हें हम आखेटक या खाद्य संग्राहक
के नाम से जानते हैं| खाने के लिए वे जानवरों का शिकार
करते थे, मछलियाँ, चिड़िया पकड़ते थे, फल-मूल, दाने, पौधे-पत्तियाँ
इकट्ठा करते थे|
आखेटक-खाद्य संग्राहक समुदाय के लोग
एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते थे| ऐसा करने के कई कारण थे:
पहला कारण: अगर वे एक ही जगह पर
ज्यादा समय तक रहते तो आस-पास के पौधों, फलों और जानवरों को खाकर समाप्त कर देते थे| इसलिए और भोजन की तलाश में उन्हें दूसरी जगह जाना पड़ता था|
दूसरा कारण: जानवर अपने शिकार के लिए
या फिर हिरन और मवेशी अपना चारा ढूँढने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाया करते हैं| इसलिए इन जानवरों का शिकार करने वाले लोग भी
इनके पीछे-पीछे भी जाया करते होंगे|
तीसरा कारण: पेड़ों और पोधों में
फल-फूल अलग-अलग मौसम में आते हैं, इसलिए
लोग उनकी तलाश में उपयुक्त मौसम के अनुसार अन्य इलाकों में घूमते होंगे|
चौथा कारण: बरसाती झीलों / नदियों के
किनारे रहने वाले लोगों को सूखे मौसम में पानी की तलाश में इधर-उधर जाना पड़ता
होगा|
आरंभिक मानव के बारे में जानकारी:
पुरातत्वविदों को कुछ ऐसी वस्तुएं
मिली हैं, जिनका निर्माण और उपयोग आखेटक-खाद्य
संग्राहक किया करते थे| लोगों ने अपने काम के लिए पत्थरों, लकड़ियों और हड्डियों के
औजार बनाये थे, जिसमें कुछ पत्थरों के औजार आज भी
बचे हैं|
इन औजारों का उपयोग फल-फूल काटने, हड्डियों और मांस काटने, पेड़ों की छाल एवं
जानवरों की खाल उतारने के लिए किया जाता था| इनसे भाले तथा बाण भी बनाये जाते थे|
मानचित्र में लाल त्रिकोण वाले
पुरास्थल से आखेटक तथा खाद्य संग्राहकों के होने के प्रमाण मिले हैं|
चूंकि पत्थर के उपकरण बहुत
महत्वपूर्ण थे, इसलिए लोग ऐसी जगह ढूंढते थे, जहाँ
अच्छे पत्थर मिल सकें|
शैल चित्रकला: जिन गुफाओं में लोग
रहते थे, उनमें से कुछ की दीवारों चित्र
मिलें हैं| इनके कुछ उदहारण मध्य प्रदेश और
दक्षिणी उत्तर प्रदेश की गुफाओं से मिले चित्र हैं| इनमें जानवरों का बड़ी कुशलता से सजीव चित्रण किया गया है|
पुरास्थल:
पुरास्थल उस स्थान को कहते हैं, जहाँ औजार, बर्तन और इमारतों जैसी वस्तुओं के अवशेष मिलते हैं| ऐसी वस्तुओं का निर्माण लोगों ने अपने काम के
लिए किया था और बाद में वे उन्हें वहीँ छोड़ गए|
कुरनूल गुफा से राख के अवशेष मिले
हैं, इसका मतलब है कि आरंभिक लोग आग जलना सीख गए थे|
पुरातत्वविदों ने इन कालों को
अलग-अलग नाम दिए हैं:
·
आरंभिक
काल : पुरापाषाण काल : 20 लाख साल पहले से 12000 साल पहले तक : मानव इतिहास की 99% कहानी इस काल में घटित हुई|
पुरापाषाण काल को 3 भागों में बाँटा
है: आरंभिक, मध्य और उत्तर|
·
मध्यपाषाण
काल : 12000 साल पहले से 10000 साल पहले तक : इस काल में पर्यावरणीय बदलाव मिलते
हैं|
इस काल के औजार बहुत छोटे होते थे, इसलिए इसे लघुपाषाण काल भी कहते हैं|
·
नवपाषाण
काल : 10000 साल पहले से
लगभग 12000 साल पहले दुनिया की
जलवायु में बड़े बदलाव आये और गर्मी बढ़ने लगी| परिणामस्वरूप कई क्षेत्रों में घास के मैदान बनने लगे, इससे हिरण, बारहसिंघा, भेड़, बकरी और गाय जैसे (घास खाने वाले) जानवरों की संख्या
बढ़ी| जो लोग इन जानवरों के पीछे इनका
शिकार करने आये, वे इनकी खान-पान की आदतों एवं प्रजनन के समय की जानकारी हासिल
करने लगे| तथा इनको पालतू बनाने की बात सोचने
लगे|
इसी दौरान उपमहाद्वीप के विभिन्न
इलाकों में गेहूँ, जौ और धान जैसे अनाज प्राकृतिक रूप
से उगने लगे| लोगों ने इन अनाजों को इकट्ठा करना
शुरू कर दिया होगा| धीरे-धीरे वे इनके बारे में जानकरी
इकट्ठा कर कृषक बन गये|
इसी तरह लोगों ने अपने अपने घरों के
आस-पास चारा रखकर जानवरों को आकर्षित कर पालतू बनाया होगा| सबसे पहले पालतू बनाया गया पशु कुत्ते का जंगली पूर्वज था| धीरे-धीरे लोग गाय-बैल, भेड़, बकरी आदि जानवरों को भी पालतू बनने लगे, ऐसा करते-करते वे पशुपालक बन गए|
लोगों द्वारा फसल उगने तथा जानवरों
की देखभाल करने को बसने की प्रक्रिया नाम दिया जाता है| बसने की प्रक्रिया लगभग 12000 वर्ष पूर्व शुरू हुई| कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसलों में
गेहूँ तथा जौ आते हैं| सबसे पहले पालतू बनाये गए पशुओं में
कुत्ते के बाद भेड़-बकरी आते हैं|
जब लोग फसल उगाने लगे तो उन्हें
फसलों की देखभाल के लिए एक ही जगह पर लम्बे समय तक रहना पड़ा| अनाज को भोज़न और बीज दोनों के रूप में बचा कर रखना आवश्यक था, इसलिए
लोगों ने इनके भण्डारण के लिए मिटटी के बड़े-बड़े बर्तन बनाये, टोकरियाँ बुनी तथा जमीन में गड्ढा खोदा|
ऊपर मानचित्र में नीले वर्ग से दिखाए
गए पुरास्थलों में पुरातत्वविदों को शुरुआती कृषकों और पशुपालकों के होने के
साक्ष्य मिले हैं|
पुरातत्वविदों को कुछ पुरास्थलों पर
झोपड़ियों और घरों के निशान मिले हैं| जैसे
कि बुर्जहोम के लोग ज़मीन के नीचे घर बनाते थे जिन्हें गर्तवास कहा जाता था| झोपड़ियों के अन्दर तथा बाहर दोनों जगह आग जलने
की जगह मिली हैं| ऐसा लगता है कि ये लोग मौसम के
अनुसार घर के अन्दर या बाहर खाना पकाते होंगे|
बहुत सारी जगहों से पत्थरों के औजार
भी मिलें हैं| जिनमें से कुछ नवपाषाण युग के हैं| इनमें वे औजार भी हैं, जिनकी धार को और अधिक पैना करने के लिए उन पर पोलिश चढ़ाई जाती थी| ओखली और मूसल का प्रयोग भी किया जाता था|
नवपाषाण युग के पुरास्थलों से कई
प्रकार के मिटटी के बर्तन मिले हैं| कभी-कभी
इन पर अलंकरण भी किया जाता था| बर्तनों
का उपयोग चीज़ों को रखने के लिए किया जाता था| बाद में इनका उपयोग खाना पकाने के लिए भी किया जाने लगा|
मेहरगढ़: यह ईरान जाने वाले सबसे
महत्वपूर्ण रास्ते पर, बोलन दर्रे के पास स्थित है| मेहरगढ़ के स्त्री-पुरुषों ने इस इलाके में सबसे पहले जौ, गेहूँ उगाना तथा भेड़-बकरी पालना सीखा| यहाँ से हिरण, सूअर, भेड़, बकरियों की हड्डियाँ मिली हैं|
मेहरगढ़ में इसके अलावा चौकोर तथा
आयताकार घरों के अवशेष मिले हैं|
प्रत्येक घर में 4 या उससे ज्यादा कमरे हैं|
कब्रों में मृतकों के साथ कुछ सामान
भी रखे जाते थे| मेहरगढ़ की कुछ कब्रों में मृतक के
साथ बकरी को भी दफनाया गया है|
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ:
मध्यपाषाण
युग : 12000 – 10000 वर्ष पूर्व
बसने की
प्रक्रिया का आरम्भ : 12000 वर्ष पूर्व
नवपाषाण युग
का आरम्भ : 10000 वर्ष पूर्व
मेहरगढ़ में
बस्ती का आरम्भ : 8000 वर्ष पूर्व
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